يوم السبت الفائت، في إطار لقاء الروائيّين (اليونانيّين) الثاني في باترا، قدّمت المجموعة الفنّيّة "بوليتروبون" برنامجاً موسيقيّاً مميّزاً مقدَّماً إلى الكاتب المكرَّم مينيس كوماندارياس ومستوحى من حياته وأعماله. الصديق ومسؤول المجموعة الفنّيّة بانايوتيس أنذريوبولوس اقترح عليّ أن أترجم إلى العربيّة قصيدة للشاعر قسطنطين كفافيس تُعجِب الكاتب مينيس كوماندارياس وقد ألقاها في الأسطوانة الملحقة بإحدى المجلّات الأدبيّة ("الكلمة")، وأن أقدّمها في الحفل. انشغالي بترجمة القصيدة كان متعةً بالحقيقة لأنّ كفافيس يُقرَأ حيث لا يتكلّم، خلفَ الكلمات (طبعاً هذا يفعله أدباء آخرون لكنّهم لا يبلغون فيه درجة تجعله سِمةً لأدبهم). أقدّم هاهنا الترجمة مع الفيديو حيث "أُلقي" القصيدة ويتبع أداء بانايوتيس الرائع يرافقه على البيانو تاسوس سبيليوتوبولوس.
أيّام من سنة 1903
ما عدتُ وجدتُها ثانيةً_ تلك المفقودةَ سريعاً....
العينَين الشعريّتَين، والوجهَ
الشاحب.... في عتمة الدرب....
ما عدتُ وجدتُها_ تلك المكتسبةَ بملء الصدفة
التي تركتها هكذا بسهولة
وودِدتُها بعد ذلك بحُرقة.
العينان الشعريّتان، والوجهُ الشاحب،
وتانِّك الشفتان ما عدتُ وجدتُها.
قسطنطين كفافيس (1917)
ΜΕΡΕΣ ΤΟΥ 1903
Δεν τα ηύρα πια ξανά_ τα τόσο γρήγορα χαμένα....
τα ποιητικά τα μάτια, το χλωμό
το πρόσωπο.... στο νύχτωμα του δρόμου....
Δεν τα ηύρα πια_ τ’ αποκτηθέντα κατά τύχην όλως,
που έτσι εύκολα παραίτησα·
και που κατόπι με αγωνίαν ήθελα.
Τα ποιητικά τα μάτια, το χλωμό το πρόσωπο,
τα χείλη εκείνα δεν τα ηύρα πια.
Κωνσταντίνος Καβάφης 1917
8 comments:
συγχαρητήρια!
Συν-χαίρω από καρδιάς!
@ -,
αν και δεν κάνω υπακοή.. :)
ευχαριστώ πολύ
@ Π.Κ.,
σας ευχαριστώ πολύ
Συγχαρητήρια πολλά κι απο μένα..
@ Ρεγγίνα,
ευχαριστώ πολύ να είστε καλά
Θερμά συγχαρητήρια για τη μετάφραση! Εύχομαι καλή συνέχεια και πάντα να δημιουργείς!
@ Δέσποινα,
θερμές ευχαριστίες!
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