Monday 18 July 2011

Παράσταη


Σε μια νύκτα αφέγγαρη

του χαμόγελού σου η θύμησις

τη σονάτα του σεληνόφωτος

παριστάνει..



Friday 1 July 2011

ΜΕ ΕΠΙΤΥΧΙΑ Η ΗΜΕΡΙΔΑ ΓΙΑ ΤΟΝ ΑΙΓΥΠΤΙΟ ΠΟΙΗΤΗ ΑΧΜΑΝΤ ΣΑΟΥΚΙ

Roni Bou Saba

φωτογραφίες: Μότασεμ Τάκλα

Πραγματοποιήθηκε την Πέμπτη 2 Ιουνίου ημερίδα αφιερωμένη στον Αιγύπτιο ποιητή Άχμαντ Σάουκι, στο Μορφωτικό Κέντρο της Πρεσβείας της Αιγύπτου στην Αθήνα.

Στην ημερίδα μίλησαν ο Μορφωτικός Ακόλουθος της Πρεσβείας της Αιγύπτου στην Αθήνα Χισάμ Νταρουίς, ο μεταφραστής Ευθύμιος Άσσος, η Αραβολόγος Ελένη Κονδύλη, και ο φιλόλογος - μεταφραστής Ρόνι Μπου Σάμπα.
Ιδιαίτερη στιγμή στην βραδιά ήταν η απαγγελία ποιημάτων από τους σπουδαστές του τμήματος της αραβικής γλώσσας που λειτουργεί στο Μορφωτικό Κέντρο.

Ελένη Κονδύλη

Στην ομιλία του ο Μορφωτικός Ακόλουθος τόνισε την σχέση του Σάουκι με τον ελληνικό πολιτισμό, καθώς ο ίδιος ο ποιητής είχε επισκεφθεί την Αθήνα το 1912, έχει εμπνευστεί από τα μνημεία της και την φιλοσοφία της, και είχε ιδιαίτερη αγάπη για την Αλεξάνδρεια. Σημειωτέον ότι η γιαγιά του ποιητή ήταν Ελληνίδα.
Στη συνέχεια μίλησε η καθηγήτρια αραβολογίας στο Πανεπιστήμιο Αθηνών Ελένη Κονδύλη για την θέση του Σάουκι στο σύνολο της αραβικής λογοτεχνίας. Στη ομιλία της αναφέρθηκε σε ποιητές και κριτικούς της χρυσής εποχής της αραβικής λογοτεχνίας, και εφάρμοσε τις απόψεις τους στον Σάουκι αναδεικνύοντας την σπουδαιότητά του και την πρωτοτυπία του.

Ευθύμιος Άσσος

Ύστερα μίλησε ο ποιητής και μεταφραστής Ευθύμιος Άσσος, ο οποίος αναφέρθηκε στην μουσικότητα της ποίησης του Σάουκι καθώς και στις ιδέες του, παραθέτοντας αποσπάσματα σε δική του μετάφραση. Πραγματεύτηκε, κατόπιν, το σημαντικό ζήτημα της μετάφρασης από τα αραβικά προς τα ελληνικά και αντιστρόφως, αναλύοντας τις δυσκολίες τέτοιου εγχειρήματος. Χαρακτηριστικό της ομιλίας του Ευθύμιου Άσσου υπήρξε η χειμαρρώδης και ένθερμη εκφορά της που σαγήνεψε τους παρόντες και κατέδειξε με το καλύτερο τρόπο την μουσικότητα της ποίησης του Σάουκι στο αραβικό πρωτότυπο όπως και στην ελληνική μετάφραση του ομιλητή.


Η τελευταία ομιλία ήταν αυτή του μεταφραστή και δάσκαλου της αραβικής στο Μορφωτικό Κέντρο Ρόνι Μπου Σάμπα.
Ο ομιλητής πρότεινε τον Σάουκι ως πρότυπο επίκαιρου διανοούμενου κυρίως σ' αυτή την μεταβαλλόμενη εποχή. Και ανέδειξε την πρωτοπορία του Σάουκι στο να ξεπεράσει το αδιέξοδο του μοντέλου των "εθνών κρατών" όπου δεν δύνανται να συμβιώσουν οι διαφορετικές "εθνικές" και θρησκευτικές ομάδες ειρηνικά. Και παρουσιάζει ο ποιητής μια πραγματική ματιά για την ιστορία της πλουραλιστικής Αιγύπτου όπου όλα τα τεκταινόμενα- ήττες και κατακτήσεις- είναι ουσιαστικά συστατικά στη διαμόρφωση της εσαεί ένδοξης πατρίδας του.


Την ημερίδα έκλεισαν με την όμορφη απαγγελία τους οι σπουδαστές του Μορφωτικού Κέντρου, τους οποίους αποκάλεσε ο δάσκαλός τους "συνοδοιπόρους μου στην αραβική γλώσσα".
Παρουσίασαν αντιπροσωπευτικά ποιήματα των ειδών που απαντούν στην ποίηση του Σάουκι. Η απαγγελία τους ήταν ένα επιτυχημένο τόλμημα δεδομένο ότι έγινε μετά από οκτάμηνη εκμάθηση της αραβικής, και για τον λόγο αυτό δέχτηκαν τον έπαινο του Μορφωτικού Ακολούθου και τα συγχαρητήρια των παρόντων.

Σ' αυτές τις τελευταίες φωτό οι ομιλητές με τον Μορφωτικό Ακόλουθο και σπουδαστές του Μορφωτικού Κέντρου.

Αναδημοσίευση πό την Ιδιωτική Οδό
تقرير عن الأمسية المخصّصة لأمير الشعراء أحمد شوقي والتي جرت في المركز الثقافي المصريّ في أثينا في 2011/6/2، نقلاً عن مدوّنة السيّد بانايوتيس أندريوبولوس

رسالة مفتوحة إلى معالي وزير الخارجيّة والمغتربين عدنان منصور.

أثينا في 30/6/2011

سيّدي الوزير، أراسلكم من بلد خدمتم فيه لبنان قنصلاً ذات يوم لأطلعكم بعد تهانيّ بتسّلمكم منصبكم الجديد، على ظلم لحق بي في سفارة بلادنا. أكتب لكم مع تقديري لكثرة مشاغلكم وخصوصاً في هذا الظرف الصعب الذي تمرّ به هذه البلاد، ولكنّي كلّي ثقة بأنّ انشغالكم بكبائر الأمور لا يلهيكم عن صغائرها.

اسمحوا لي، قبل، بأن أعرّفكم بنفسي. أنا شابّ أنهى في لبنان دراسة الأدب العربيّ في الجامعة اللبنانيّة (2005) واللاهوت في جامعة البلمند (2006). وأتيت بعدها إلى اليونان للتخصّص في الأدب اليونانيّ بسبب العلاقة العميقة التي تربطه بدراساتي السابقة. وقد أوشكت على الانتهاء. وأعمل حاليّاً في مجال الترجمة وتدريس اللغة العربيّة، بالإضافة إلى محاولة التفرّغ لكتابة رسالة الماجيستير في الأدب العربيّ_ مراسلة مع أستاذي في الجامعة اللبنانيّة.

بادرت في 11/12/2008 إلى تعريف السفارة بنفسي ووضع نفسي بتصرّفها وخصوصاً في المجال الثقافيّ_ إذ أومن، استطراداً، أنّه أعمّ فائدة من المجال الدبلوماسي في علاقة تربط بلدين كلبنان واليونان ومؤسف ألاّ يكون هناك ملحقيّة ثقافيّة. وقدّمت يومها للسسفير صوفان بعض الاقتراحات الثقافيّة. وما كان منه إلا أن اتّصل بالمطران جورج خضر لتهنئته على دعمي وإرسالي لمتابعة دروسي. وقتها نشأت بيننا علاقة ثقة واحترام لم تنقطع إلا بعد خيبة مريرة لكم مختصرها.

في أواسط حزيران عام 2010 اتّصل بي السفير ليخبرني أنّ أحد موظّفي السفارة قدّم استقالته، وهو بالتالي يبحث عن بديل. وقد اتّصل بي ليسألني إن كان هناك مَن أقترحه لهذه الوظيفة! اتّصلت به بعد التفكير وعرضتُ نفسي لأنّ العمل في السفارة سيساعدني على الاستمرار في دراستي بعد توقّف منحة وزارة الخارجيّة اليونانيّة عند نيلي الليسانس. بناءً عليه، طلب منّي المجيء إلى السفارة في أثينا_ وكنتُ أقطن وقتها في باترا_ للتدرّب على بعض مهمّات القسم القنصليّ. بسبب صعوبة تنقّلي عرضتُ أن آتي لبضعة أيّام وأبدأ بالعمل أوّل تمّوز. لم يرد ذلك وطلب أن أجيء مدى الصيف يومين أو أكثر في الأسبوع للتدرّب على أن يبقى الموظّف الآخر في وظيفته حتّى تشرين الثاني. بسبب ثقتي الكبيرة وقتها بالسفير ورغبتي بإظهار كلّ تعاون في العمل معه، رحت أجيء إلى أثينا كلّ أسبوع وأنزل في ضيافة دار النشر "مايستروس" الذين أتعامل معهم(أصدرنا كتاباً للمطران خضر، ونعمل على اثنين غيره، إضافة إلى إصدار "حالة حصار" لدرويش، إلخ..). في تشرين الأوّل انتقلت إلى أثينا بعد إعلام السفير بذلك ليتسنّى لي التدرّب يوميّاً واستلام الوظيفة في تشرين الثاني. رغم أنّه حتّى تلك اللحظة لم يكن قد أصدر قرار التعيين ولا طلب منّي إحضار المستندات اللازمة. ولا قال لي أن لا أبدّل سكني من منطقة إلى أخرى لأنّه ليس بعد جاهزاً للتخلّي عن الموظّف الآخر.

بخلاف نصيحة الجميع تمسّكت بثقتي بالسفير..

وإذ كنتُ قد صرت في أثينا، اتّصل بي يوم الإثنين 11 تشرين الأوّل ليطلب منّي القبول على تأخير تعييني في السفارة لغاية كانون الثاني من العام الحالي. والسبب؟ أنّ الموظّف الآخر كان بحاجة إلى أيّام عمل إضافيّة لتحسين راتب تقاعده بحسب القانون اليونانيّ الجديد. واقترح السفير أن أداوم على العمل كما اتّفقنا في الأوّل من تشرين الثاني على أن يدفع لي ذلك الشخص 800 يورو شهريّاً. بعد مشاورة أحد الأصدقاء، إضافة إلى الموظّف المعنيّ، شعرتُ بأنّ هذا التصرّف لا يبشّر بالخير فإماّ أرفض العرض وتكون النتيجة أن يرفض السفير تعييني بعد ذلك، أو أقبل ويصبح في يدي مخالفة أفضحها في هذه اللحظة التي ما كنت أتمنّاها قطّ.

في أواسط كانون الأوّل وبعد أن أحضرت المستندات المطلوبة بقي السفير يماطل في التوقيع على قرار التعيين، رغم تجهيزه. وصدف أن نجمت مشكلة بسبب علاقتي بالقنصليّة في باترا وعملي على مراجعة ترجمة ديوان "حالة حصار" لمحمود درويش الذي موّل حضرة القنصل غندور مشكوراً إصداره. (وهو كتاب لم يُحَل إلى الوزارة كما كان يجب بناءً على طلب القنصليّة، لأنّ المقدّمة لم تعجب السفير). وهدّد بتأجيل التعيين ما دمتُ على علاقة بالقنصليّة. وقتها طلبتُ منه أن يؤجّل التعيين لغاية تغيير إذن الإقامة الطالبيّة لإذن إقامة عمل بسبب انعدام الثقة بيننا ورغبتي في تحويل العلاقة من ثقة "عمياء" بكلام السفير إلى تواقيع على الورق حتّى لا يستغلّ أيّ ثغرة لفصلي من العمل لاحقاً.

استدعى فوراً الموظّف الآخر وحاول إقناعه بالقبول بمتابعة العمل ولو بعد التصريح عن تقاعده، مخالفاً القانون اليونانيّ. لم يتردّد الآخر طبعاً في مدّ السفارة بخدماته. ولكنّه ظلّ يدفع لي 800 يورو. وهكذا نكث كلّ من السفير وموظّفه كلامه. وفي شهر كانون الثاني ما عاد السقير يوكل إليّ أيّ عمل في السفارة، بعد أن كنتُ أترجم رسائل ومقالات إضافة إلى القيام بباقي الأعمال ذات الطابع القنصليّ_ على حاسوبي الخاصّ في كثير من الأحيان.

كان هذا لحملي على مغادرة السفارة بمبادرة منّي. وحين لم أرحل في كانون الثاني، وإذ قد دفع لي الموظّف 800 يورو، طلب منه السفير في أوائل شباط أن يمتنع عن دفع المبلغ المذكور في شباط. وهو أمر أكّده لي الموظّف المعنيّ نفسه بعد مدّة.

وفي اليوم نفسه، لحسن حظّ السفير، وردت برقيّة محوّلة من الجيش تعلم الوزارة بالطلب إلى السفارة في أثينا أن تتوخى الحيطة مخافة اعتداء ما. فما كان من السفير إلا أن طلب منّي عدم المجيء إلى السفارة، مؤقّتاً، لأنّه لا يستطيع أن يتحمّل المسؤوليّة في حال تعرّضي لمكروه ما دمت لستُ موظّفاً قانونيّاً في السفارة_ على الرغم من أنّي كنت أعمل في السفارة في فترة تعرّض بعض السفارات في أثينا لاعتداءات عبر طرود مفخّخة. وفي كلّ مرّة كنتُ أراجعه في أمر تعييني كان يردّد هذه الحجّة. إلى أن قرّر إعطائي إفادة لأقدّمها بنفسي للدائرة المختصّة بإذن الإقامة في بلديّة أثينا وهي غير ما يُطلب لتسوية أوراقي للعمل في إطار السفارة. في الإفادة يقول "[...] يُعيَّن موظّفاً في القسم القنصليّ بدءاً من أوّل أذار..." وذلك بتاريخ 17 شباط 2011 وطلب من أمينة سرّه أن تقول لي أن لا أعاود الاتّصال به_ هذا أكّده لي بنفسه بحضور القنصل منذ أسبوعين بتاريخ 8/6/2011.

ولمّا كانت الأمور تسير بمماطلة أذتني في دراساتي وأعمالي، قابلت الموظّف الآخر وأخبرته عن عزمي بالتبليغ عن مخالفته للقانون اليونانيّ عبر إعلان تقاعده من جهة ومتابعة العمل من جهة اخرى. وانّ عليه أن يستقيل، من جديد، ليقوم السفير بتعييني_ لأنّه كان يزعم أنّ السفير يرفض استقالاته المتكرّرة.

ولمّا كانت أخلاقي لا تسمح لي بالقيام بعمل كهذا يضرّ بسمعة بلادي وبرزق الموظّف الآخر أحجمت ولم أبلّغ عن المخالفة. وهي مخالفة تجري في إطار السفارة تجاه بلد وقف إلى جانب لبنان في أصعب أيّامه عام 2006 على سبيل المثال لا الحصر.

بعد إصرار الموظّف على الاستقالة، طُلِب منّي المجيء الى السفارة يوم الخميس 5/5/2011 لمقابلة السفير لعلّه يعيّنني في حزيران أو تمّوز. وقد فضّل تمّوز لأنّ ذهابي لتقديم بعض امتحاناتي في الجامعة يعيق عمل السفارة.

سيّدي الوزير، الآن وقد عُيّنت، أستقيل من هذه الوظيفة.

كان يمكن أن أستقيل بلا هذه الرسالة، لكن لا يبدو أنّ مثل هذه المخالفة تحصل لأوّل مرّة. تضرّرت منها شخصيّاً ولا أريد لغيري ما أصابني بسبب عدم معرفتكم ببعض ما في الكواليس. هذا الأسلوب في التعاطي لا أرضاه لنفسي وقد صبرتُ أكثر من طاقتي حتّى أبلغ لحظة لم أكن يوماً لأتمنّاها، هي هذه.

سيّدي الوزير، يذكر الجاحظ_ في كتاب الحيوان_ أنّ "العفو يُفسِدُ من اللئيم بقدر إصلاحه من الكريم"، ويقول الإمام أبي عبد الله الصادق "العامل بالظلم والمعين له والراضي به شركاء ثلاثتهم". بِهَديِهما عملت وبلّغت، وهذا جلّ ما أردت.

الداعي لكم بالتوفيق في عملكم الشائك والشاقّ

روني بو سابا